मुद्रास्फीतिः
थोक मूल्य
सूचकांक (डब्ल्यूपीआई)
– मुद्रास्फीति
दर 2013-14 के 6.0 प्रतिशत
से घटकर 2014-15 में 2.0 प्रतिशत
और अप्रैल-अकटूबर,
2015 के दौरान मुद्रास्फीति
कम होकर -3.5 प्रतिशत
रह गई। थोक मूल्य
सूचकांक नवंबर
2014 से नकारात्मक
राह चल रहा है और
यह अक्टूबर 2015 में
-3.8 प्रतिशत रहा।
थोक मूल्य सूचकांक
खाद्यान्न मुद्रास्फीति
जनवरी 2015 के 6.0 प्रतिशत
से घटकर अक्टूबर
2015 में 1.7 प्रतिशत
रह गई। ईंधन और
विद्युत मुद्रास्फीति
पिछले महीने के
-17.7 प्रतिशत और जनवरी
2015 के -11.0 प्रतिशत की
तुलना में अक्टूबर
2015 में -16.3 प्रतिशत
हो गई। निर्मित
उत्पादों की मुद्रास्फीति
दर जनवरी 2015 के 1.0 प्रतिशत
की तुलना में घटकर
-1.7 प्रतिशत हो गई।
उपभोक्ता
मूल्य सूचकांक(सीपीआई)
– 2014-15 के लिए सीपीआई
नई श्रृंखला मुद्रा
स्फीति घटकर 5.9 प्रतिशत
रह गई। यह 2013-14 में
9.5 प्रतिशत थी। जनवरी
2015 से ही यह दर 5.5 प्रतिशत
से नीचे रही है।
2015-16 (अप्रैल-अक्टूबर)
के दौरान औसत उपभोक्ता
मूल्य सूचकांक
4.7 प्रतिशत और अक्टूबर
2015 में 5.0 प्रतिशत
रहा। उपभोक्त खाद्यन
मूल्य सूचकांक
(सीएफपीआई) अक्टूबर
2015 में घटकर 5.2 प्रतिशत
रहा गया। यह फरवरी
2015 में 6.9 प्रतिशत
की ऊचाई पर था।
सीपीआई-औद्योगिककर्मी
आधारित मुद्रास्फीति
सितंबर 2015 में 5.1 प्रतिशत
रही। यह जनवरी
2015 में 7.2 प्रतिशत
थी। सीपीआई-कृषि
श्रम तथा सीपीआई-ग्रामीण
श्रम के आधार पर
मुद्रास्फीति
सितंबर 2015 में क्रमशः
घटकर 3.5 प्रतिशत
और 3.7 प्रतिशत रह
गई। जनवरी 2015 में
यह क्रमशः 6.2 प्रतिशत
और 6.5 प्रतिशत रही।
मुद्रास्फीति
नियंत्रण के लिए
उठाए गए कदमः
वैश्विक
तेल भाव और कॉमोडिटी
मूल्यों में गिरावट
के साथ सरकार द्वारा
उठाए गए मुद्रस्फीति
नियंत्रित रही
है। सरकार द्वारा
उठाए गए कदमों
में राज्यों को
एपीएमसी अधिनियम
की सूची से हटाकर
फलों और सब्जियों
की मुफ्त आवाजाही
के बारे में राज्यों
को परामर्श देना
सभी दालों (काबली
चना तथा आर्गेनिक
दालों तथा कुछ
मात्रा में मसूर
दाल को छोड़कर)
के निर्यात पर
पाबंदी लगाना,
दालों और प्याज
आयात शुल्क शून्या
करना, आवश्यक वस्तु
अधिनियम के तहत
प्याज, दाल, खाद्य
तेल तथा खाद्य
तिलहन के मामले
में स्टॉक की सीमा
तय करने के बारे
में राज्यों/केन्द्रशासित
प्रदेशों को अधिकार
देना, पिछले दो
वर्षों में न्यूनतम
समर्थन मूल्य को
सबल बनाए रखना
शामिल है। भारतीय
रिजर्वं बैंक की
सतर्क मुद्रा नीति
तथा सरकार तथा
भारतीय रिजर्वं
बैंक द्वारा मौद्रिक
नीति संरचना समझौता
करने से भी मुद्रास्फीति
को सीमित बनाए
रखने में मदद मिली
है।
मौद्रिक
नीतिः
2015 के दौरान
नीति (रैपो) दर में
125 आधार अंकों की
कटौती की गई है।
यह मौद्रिक नीति
को सहज बनाने की
ओर संकेत करता
है। मुद्रास्फीति
में निरंतर गिरावट
और विकास में तेजी
के लिए भारतीय
रिजर्वं बैंक ने
सितंबर 29, 2015 को दरों
में 50 आधार अंक की
कटौती कर रैपो
दर 6.75 प्रतिशत रखा
था।
भारत सरकार
और भारतीय रिजर्वं
बैंक ने फरवरी
2015 में मौद्रिक नीति
संरचना समझौता
पर हस्ताक्षर किया।
इसका उद्देश्य
विकास लक्ष्य को
ध्यान में रखते
हुए मूल्य स्थिरता
बनाए रखना है।
समझौते के अनुसार
भारतीय रिजर्वं
बैंक नीतिगत ब्याज
दरें निर्धारित
करेगा और जनवरी
2016 तक मुद्रास्फीति
6 प्रतिशत से नीचे
रखने का प्रयास
करेगा और 2016-17 और उसके
बाद के वर्षों
के लिए (+/-) दो प्रतिशत
के साथ चार प्रतिशत
की सीमा में रखा
जाएगा। इस समझौते
से बाजार में स्थिरता
आई है।
बैंकिंगः
वित्तीय
समावेशन में सुधार
के लिए पेमेंट
बैंक तथा लघु वित्त
बैंक स्थापित करने
के लिए रिजर्वं
बैंक ने स्वीकृति
दे दी है। अगस्त
2015 में पेमेंट बैंक
स्थापित करने के
लिए 11 कंपनियों
को सैद्धांतिक
मंजूरी दी गई और
सितंबर 2015 में 10 कंपनियों
को लघु वित्त बैंक
स्थापित करने की
सैद्धांतिक मंजूरी
दी गई। पेमेंट
बैंकों के लिए
न्यूनतम प्रदत्त
इक्विटी पूंजी
एक सौ करोड़ रुपए
की होगी, जिसमें
प्रवर्तक का योगदान
कारोबार शुरू करने
के पहले पांच वर्षों
के लिए प्रदत्त
इक्विटी पूंजी
का न्यूनतम 40 प्रतिशत
होगा।
·
सार्वजनिक क्षेत्र
के बैंकों को पूंजी
की दृष्टि से फिर
से मजबूत बनाने
के लिए सरकार ने
चालू वित्त वर्ष
में पर्याप्त धन
की व्यवस्था की
है। वित्त वर्ष
2015-16 के बजट में किए
गए 7,940 करोड़ रुपए
के अतिरिक्त संसद
द्वारा पारित पूरक
मांग में 12,000 करोड़
रुपए की राशि का
प्रावधान किया
गया है।
·
सरकार ने अगस्त
2015 में मिशन इंद्रधनुष
की घोषणा की। इसका
उद्देश्य सार्वजनिक
क्षेत्र के बैंकों
का कायाकल्प करना
और गर्वंनेंस दायित्व
तथा पूंजी जुटाने
संबंधी विषयों
सहित उनके प्रदर्शन
को प्रभावित करनी
वाली समस्याओं
का निराकरण करना
है। इनमें निम्नलिखित
शामिल हैः
v सात
सदस्यीय बैंक बोर्ड
ब्यूरौं का गठन।
यह ब्यूरौं सार्वजनिक
क्षेत्र के बैंकों
में नियुक्ति प्रक्रिया
की देखरेख करेगा
और परामर्श सेवाए
देगा।
v श्रेष्ठ
वैश्विक कार्य
व्यवहारों के आधार
पर अध्यक्ष तथा
प्रबंध निदेशक
के पद को अलग किया
गया। आगे से सीईओ
का पद एमडी और सीईओ
होगा और एक अलग
व्यक्ति को सार्वजनिक
क्षेत्र के बैंकों
का गैर-कार्यकारी
अध्यक्ष नियुक्त
किया जाएगा।
v सरकार
ने अगले चार वर्षों
में पूंजी की दृष्टि
से बैंकों को मजबूत
बनाने के लिए बजटीय
आवंटन में से 70 हजार
करोड़ रुपए उपलब्ध
कराने का प्रस्ताव
किया है।
v
जोखिम नियंत्रण
उपायों तथा एनपीए
घोषणा व्यवस्था
को मजबूत बनाकर
सार्वजनिक क्षेत्र
के बैंकों का भार
कम किया गया है।
v सार्वजनिक
क्षेत्र के बैंकों
के कार्य प्रदर्शन
को मापने के लिए
नई रूपरेखा।
v गर्वंनेंस
सुधार जारी।
वित्तीय क्षेत्रः
·
20 हजार करोड़
रुपए का राष्ट्रीय
निवेश और अवसंरचना
कोष (एनआईआईएफ)
स्थापित करने की
स्वीकृति।
·
वैकल्पिक निवेश
फंडों (एआईएफ) में
विदेशी निवेश को
मंजूरी। अब वैकल्पिक
निवेश कोषों में
निवेश को मंजूरी
दी जाएगी। ऐसे
कोष पंजीकृत ट्रस्ट,
इनकारपोरेटड कंपनी
या सीमित दायित्व
साझेदारी के रूप
में स्थापित किए
जाते है।
·
विदेशी पोर्टफोलियो
निवेशकों (एफपीआई)
द्वारा निवेश के
लिए व्यवस्था के
उद्देश्य से भारतीय
रिजर्वं बैंक ने
ऋण प्रतिभूतियों
में एफपीआई सीमाओं
के लिए न्यूनतम
अवधि रूपरेखा
(एमटीए) तैयार किया
है। अब से ऋण प्रतिभूतियों
में एफपीआई निवेश
के लिए सीमाएं
रुपए के संदर्भ
में घोषित/निर्धारित
की जाएगी। केन्द्र
सरकार की प्रतिभूतिओं
में एफपीआई निवेश
की सीमाए चरणों
में मार्च 2018 तक बकाया
स्टॉक का 5 प्रतिशत
की जाएगी। समग्र
दृष्टि से यह मार्च
2018 तक केन्द्र सरकार
की प्रतिभूतियों
के लिए 1200 बिलियन
के अतिरिक्त निवेश
का मार्ग प्रशस्त
करेगा। यह सभी
सरकारी प्रतिभूतियों
के लिए 1535 बिलियन
की वर्तमान सीमा
से ऊपर होगी। इसके
अतिरिक्त राज्य
विकास ऋणों (एसडीएल)
में एफपीआई द्वारा
निवेश के लिए अतिरिक्त
सीमा तय होगी जो
मार्च 2018 तक बढाकर
बकाया स्टॉक के
2 प्रतिशत कर दी
जाएगी। इससे मार्च
2018 तक पांच सौ बिलियन
के लगभग अतिरिक्त
सीमा तैयार हो
जाएगी।
·
कमोडिटी वायदा
बाजारों के नियमों
को मजबूत बनाने
के लिए 28 सितंबर
2015 को वायदा बाजार
आयोग (एफएफएमसी)
का विलय भारतीय
प्रतिभूति एवं
विनिमय बोर्ड
(सेबी) में कर दिया
गया।
कर मुक्त
बॉंडः
भारत सरकार ने
वित्त वर्ष 2015-16 के
दौरान सार्वजनिक
क्षेत्र के उद्योमों
द्वारा 40 हजार करोड़
रुपए का कर मुक्त
बॉंड जारी करने
की अनुमति दी है।
ऐसे सार्वजनिक
उद्योमों में भारतीय
राष्ट्रीय राजमार्ग
प्राधिकरण (एनएचएआई),
भारतीय रेल वित्त
निगम (आईआरएफसी),
आवास तथा शहरी
विकास निगम (एचयूडीसीओ),
भारतीय नवीकरणीय
ऊर्जा विकास एजेंसी
(आईआरईडीए), विद्युत
वित्त निगम लिमिटेड
(पीएफसी), ग्रामीण
विद्युतीकरण निगम
लिमिटेड (आरईसी),
राष्ट्रीय ताप
विद्युत निगम लिमिटेड
(एनटीपीसी) हैं।
निम्नलिखित श्रेणी
के निवेशक इन बॉंडों
को खरीद सकते हैः
खुदरा निजी निवेशक
(आरआईआई), पात्र
संस्थागत खरीदार
(क्यूआईबी), कार्पोरेट
(वैधानिक कार्पोरेशन
सहित), ट्रस्ट, साझेदारी
वाली फर्में, सीमित
दायित्व की साझेदारी,
सहकारी बैंक, क्षेत्रीय
ग्रामीण बैंक तथा
अन्य वैधानिक संस्थान।
संस्थानों को अधिनियम
तथा हाई नेटवर्थ
इंडिविजुअल (एनएचआई)
का अनुपालन करना
होगा। यह बॉंड
10 वर्ष या 15 वर्ष या
20 वर्षों के लिए
जारी किए जाते
हैं। वित्त वर्ष
2015-16 के लिए कर मुक्त
बॉंडों के नियम
और शर्त http://www.incometaxindia.gov.in/communications/notification/notification59_2015.pdf पर देखे
जा सकते है।
11वां
भारत-सउदी अरब
संयुक्त आयोगः
भारत-सउदी अरब
संयुक्त आयोग की
ग्यारहवीं बैठक
26-28 मई 2015 को नई दिल्ली
में हुई। इस बैठक
में व्यापार और
वाणिज्य, उच्च
शिक्षा, स्वास्थ्य,
संचार, संस्कृति
और सूचना प्रौद्योगिकी
सहित अनेके विषयों
पर चर्चा की गई।
दोनों पक्षों ने
दोनों देशों में
निवेश की संभावनाओं
को तलाशने की आवश्यकता
जताई।
भारत
में सार्वजनिक
निजी साझेदारी
(पीपीपी) के लिए
वातावरण बनानाः
पीपीपी को प्रोत्साहित
करने के लिए भारत
सरकार के कदमः भारत
सरकार अवसंरचना
सेवाओं के विस्तार
के रणनीति के रूप
में सार्वजनिक
निजी साझेदारी
(पीपीपी) के उपयोग
पर दृढ़ता से बल
देती रही है। पीपीपी
के लिए वातावरण
बनाने के लिए अनेक
कदम उठाए गए हैः
Ø
परियोजनाओं
का शीघ्र मूल्यांकन
सुनिश्चित करने,
विलंब को खत्म
करने, श्रेष्ठ
अंतर्राष्ट्रीय
कार्य व्यवहारों
को अपनाने और मूल्यांकन
व्यवस्था तथा दिशा
निर्देशों में
एकरूपता लाने के
लिए सार्वजनिक
निजी साझेदारी
वाली परियोजनाओं
के मूल्यांकन की
व्यवस्था की गई
है।
Ø
पीपीपी परियोजनाओं
के मूल्यांकन के
लिए गठित सार्वजनिक
निजी साझेदारी
मूल्यांकन समिति
ने 2015 में अब तक
21817.03 करोड़ रुपए (3636.17
मिलियन डॉलर) टीपीसी
के साथ 13 केन्द्रीय
परियोजनाओं को
स्वीकृती दी है।
Ø
सरकार ने पीपीपी
परियोजनाओं के
लिए लाभ अंतर धनपोषण
योजना बनाई। अक्सर
अवसंरचना परियोजनाएं
वाणिज्यिक रूप
से लाभकारी नहीं
हो पाती, लेकिन
ऐसी परियोजनाएं
आर्थिक रूप से
आवश्यक होती हैं
इसीलिए लाभ अंतर
धनपोषण योजना तैयार
की गई है। इस योजना
से सार्वजनिक निजी
साझेदारी वाली
परियोजनाओं को
वाणिज्यिक दृष्टि
से लाभकारी बनाने
के उद्देश्य से
वित्तीय सहायता
के रूप में एक मुश्त
या अंतराल पर अनुदान
दिए जाते हैं।
इस योजना के तहत
कुल परियोजना के
20 प्रतिशत तक लाभ
अंतर धनपोषण की
व्यवस्था है। परियोजना
की स्वामित्व वाली
सरकारी या वैधानिक
कंपनी कुल परियोजना
लागत का और 20 प्रतिशत
का धनपोषण अपने
बजट से करना चाहे
तो अतिरिक्त अनुदान
के रूप में कर सकती
है। चालू कैलेंडर
वर्ष 2015 में 901.00 करोड़
(150.16 मिलियन डॉलर)
की कुल परियोजना
लागत के साथ पांच
परियोजनाओं के
लिए अधिकृत संस्थान
ने सैद्धांतिक
स्वीकृति दी है।
इसी तरह अधिकृत
संस्थान ने विभिन्न
क्षेत्रों में
1119.66 करोड़ (186.61 मिलियन
डॉलर) की 9 परियोजनाओं
को अंतिम स्वीकृति
दी। इसमें 166.7 करोड़
रुपए (27.78 मिलियन डॉलर)
का वीजीएफ की व्यवस्था
है।
Ø
म्युनिसिपल
उधारी- अवसंरचना
परियोजनाओं (सामान्यतः
पीपीपी) के वित्त
पोषण के लिए पूंजी
बाजार से धन उगाही
के लिए शहरी निकायों
(यूएलबी) की क्षमताओं
की रूपरेखा विकसित
करने के लिए सरकार
ने पायलट परियोजना
शुरू किए है। पायलट
परियोजना का उद्देश्य
दोहराए जाने वाले
मॉडल तथा संबंधित
दस्तावेज़ विकास
और एक शहरी निकाय
के लिए सफल पायलट
ट्रांजेक्शन के
माध्यम से मॉडल
को दिखाना है।
भारत में म्युनिसिपल
बोंड जारी करने
के लिए दिशा-निर्देश
अधिसूचित किए गए
हैं।
Ø
ज्ञान स्रोत- पीपीपी
के बारे में ज्ञान
के फैलाव के लिए
व्यापाक प्रयासों
के हिस्से के रूप
में आर्थिक मामलों
के विभाग ने पीपीपी
मॉडल अपनाने वाले
के उपयोग के लिए
टूलकीट तथा नॉलेज
उत्पाद विकसित
किया है। इनमें
निम्नलिखित शामिल
हैः
1.
ठेका बाद का प्रबंधनः
आर्थिक मामलों
के विभाग ने राजमार्गों,
बंदरगाहों तथा
शिक्षा क्षेत्रों
के लिए ठेके बाद
की प्रबंधन निर्देश
सामग्री विकसित
की है। इसका उद्देश्य
परियोजना अधिकारियों
को निर्देश तथा
समर्थन देना है।
विशेषकर नियमित
निगरानी और महत्वपूर्ण
जोखिमों का प्रबंधन
सुनिश्चित करना।
ऐसे जोखिम परियोजनाओं
का ठेका देने के
बाद उभरते है।
मैन्यूअल उपयोग
के लिए सहज है इंटररेक्टिव
ऑनलाइन टूलकीट्स
है जिनका उपयोग
परियोजना प्रबंधन
गतिविधियों में
व्यावहारिक ऐप्लीकेशन
सहायता के लिए
परियोजना अधिकारी
कर सकते है। पीपीपी
के लिए निर्देश
सामग्री तथा ऑनलाइन
टूलकीट विभाग की
वेवसाइट www.pppinindia.com. पर उपलब्ध
होगा।
2.
पीपीपी ठेकों
के लिए फिर से वार्ता
के लिए रूपरेखाः
पीपीपी ठेकों के
बारे में दोबारा
वार्ता की रूपरेखा
सुझाने पर रिपोर्ट
तैयार की गई है।
इसमें ठेके के
बाद परियोजना की
ठेका संबंधी तथा
संस्थागत प्रबंधन
में आवश्यक परिवर्तन
पर बल दिया गया
है। कन्सेशन समझौते
में कानूनी धाराओं
की पहचान का काम
जारी है। दोबारा
वार्ता की रूपरेखा
में राष्ट्रीय
राजमार्गों तथा
प्रमुख बंदरगाह
कन्सेशनों के लिए
व्यापाक निर्देश
दिए गए हैं यह निर्देश
अनुसंधान आधारित
है। पुनः वार्ता
के लिए मॉडल धाराएं
तैयार की जा रही
हैं।
वित्तीय
स्थिरता और विकास
परिषद (एफएसडीसी)
वित्त
मंत्री की अध्यक्षता
में बनी वित्तीय
स्थिरता और विकास
परिषद में वित्तीय
क्षेत्र के नियामक
प्राधिकारों के
प्रमुख तथा संबद्ध
विभागों के सचिव
और प्रमुख आर्थिक
सलाहकार (सीईए)
सदस्य होते है।
यह परिषद बड़े
वित्तीय समूहों
के कामकाज सहित
अर्थव्यवस्था
की निगरानी करती
है और वित्तीय
साक्षरता और वित्तीय
समावेशन से संबंधित
विषयों सहित अंतर-नियामक
समन्वय से संबंधित
विषयों का समाधान
करता है।
जनवरी
2015 से नवंबर 2015 के बीच
परिषद की दो बैठकें-
15 मई 2015 तथा 5 नवंबर
2015 को हुईं। इन बैठकों
में वित्तीय स्थिरता
तथा अंतर-नियामक
समन्वय विकास से
संबंधित महत्वपूर्ण
विषयों पर चर्चा
हुई। बैठक में
अर्थव्यवस्था
की चुनौतियों पर
भी विस्तृत रूप
से विचार किया
गया। बाहरी क्षेत्र
की कमजोरियों,
भविष्य के वित्तीय
क्षेत्र के सुधारों
पर बल, कार्पोरेट
बोंड बाजार विकास,
बैंकों में धोखाधड़ी
पर रोक और उनकी
पहचान और कठोर
उपाए करने, बढ़ते
बैंक एनपीए और
कार्पोरेट क्षेत्र
बैलेंस शीट भार
जैसे प्रमुख विषयों
पर विचार किया
गया। बैठक में
प्रतिभूति बाजार
तथा कॉमोडिटी डेरीवेटिव
बाजार से संबंधित
नियमों में तालमेल
पर भी विचार हुआ।
एफएसडीसी
की एक उप समिति
रिजर्वं बैंक के
गर्वनर की अध्यक्षता
में बनाई गई। इसकी
दो बैठकें हईं।
इन बैठकों में
वित्तीय संपत्तियों
के लिए खाता संग्रहण,
वित्तीय स्थिरता
पर पड़ने वाले
वैश्विक तथा घरेलू
प्रभाव, कार्पोरेट
बॉंड बाजार विकास,
विदेशी खाताटैक्स
अनुपालन अधिनियम
(एफएटीसीए), व्यापक
वित्तीय व्यवस्था
विकसित करने पर
चर्चा हुई। एफएसडीसी
उप समिति के अंतर्गत
विभिन्न तकनीकी
समूह बनाए गए है।
इनमें अंतर-नियामक
तकनीकी समूह (आईआरटीजी),
वित्तीय समावेशन
और वित्तीय साक्षरता
पर तकनीकी समूह
(टीजीएफआईएल), वित्तीय
समूहों पर अंतर
नियामक फोरम (आईआरएफ-एफसी)
तथा पूर्व चेतावनी
समूह (ईडब्ल्यूजी)
की बैठकें भी हुईं।
भारत
की एफएसबी सामान
समूह समीक्षाः
एफएसबी
प्रतिबद्धता के
हिस्से के रूप
में भारत ने पहली
बार 2015 में एफएसबी
सामान समूह समीक्षा
प्रक्रिया से गुजरने
की पेशकश की। इसके
संदर्भ को अंतिम
रूप दे दिया गया
है। समीक्षा के
अंतर्गत शामिल
किए जाने वाले
विषय हैं 1. मैक्रो
प्रूडेनशियल नीति
रूपरेखा तथा एनबीएफसी
का नियमन और निगरानी।
न्यू
डेवलप्मेन्ट बैंक
(एनडीबी) की स्थापनाः
चीन
के शंघाई में ब्रिक्स
देशों द्वारा न्यू
डेवलप्मेन्ट बैंक
स्थापित किया गया
है। यह बैंक ब्रिक्स
देशों, उभरती अर्थव्यवस्थाओं
तथा विकासशील देशों
में अवसंरचना और
विकास परियोजनाओं
के लिए संसाधन
जुटाएगा। बैंक
बहुपक्षीय तथा
क्षेत्रीय वित्तीय
संस्थानों के जारी
प्रयासों में भी
सहायता देगा। श्री
के.वी. कामथ इस बैंक
के पहले अध्यक्ष
है। एनडीबी अप्रैल
2016 तक पहला ऋण देगा।
ब्रिक्स
आकस्मिक आरक्षित
निधि प्रबंधन
(सीआरए) की स्थापनाः
ब्रिक्स
देशों द्वारा सीआरए
की स्थापना के
लिए अधिकतर प्रारंभिक
कार्य 2015 में पूरे
कर लिए गए है। 4 सितंबर
2015 को गर्वंनिंग
काउंसिल की पहली
बैठक में गर्वंनिंग
काउंसिल प्रक्रिया
नियमों तथा स्थायी
समिति प्रक्रिया
नियमों को मंजूरी
दी गई। स्वप्रबंधित
आकस्मिक आरक्षित
निधि प्रबंधन का
सकारात्मक प्रभाव
पड़ेगा। इससे ब्रिक्स
देशों को लघु अवधि
के तरलता दबाव
को टालने में मदद
मिलेगी पारस्परिक
समर्थन मिलेगा
और वित्तीय स्थिरता
अधिक मजबूत होगी।
यह वैश्विक वित्तीय
सुरक्षा नेट को
मजबूत बनाने तथा
बनाने में योगदान
देगा और वर्तमान
अंतर्राष्ट्रीय
प्रबंधों का पूरक
बनेगा।
सार्क
एवं एसडीएफ बैठकेः
1.
19-20 अगस्त 2015 को सार्क
वित्त मंत्रियों
तथा वित्त सचिवों
की सातवीं बैठक
हुई। इन बैठकों
में भारतीय शीष्टमंडल
का नेतृत्व वित्त
राज्य मंत्री श्री
जयंत सिन्हा ने
किया। बैठकों में
सार्क देशों के
बीच मुद्रा अदला-बदली
प्रबंधन, अधिक
पूंजी प्रवाह में
सहायता और सार्क
वित्त में क्षेत्र
से बाहर का निवेश
और विकास पर विचार
हुआ।
2.
20 अगस्त 2015 को एसडीएफ
गर्वंनिंग काउंसिल
की चौथी बैठक हुई।
इसमें सार्क विकास
कोष को मजबूत बनाने
तथा आगे बढ़ाने
के उपायों पर चर्चा
हुई।
3.
अप्रैल और अगस्त
2015 में क्रमशः सार्क
विकास कोष की 21वीं
और 22वीं बोर्ड बैठकें
हुईं।
4.
18 नवंबर 2015 को केन्द्रीय
मंत्रिमंडल ने
सार्क देशों के
लिए मुद्रा अदला-बदली
प्रबंधन ढ़ाचे
की वैधता के विस्तार
को नवंबर 2017 तक दो
वर्षों के संशोधन
के साथ मंजूरी
दी।
देश के
बाहर बोली लगाने
वाली कंपनियों
को समर्थन देने
की योजनाः
16 सितंबर
2015 को भारत सरकार
ने विदेशों में
अवसंरचना परियोजनाओं
के लिए बोली लगाने
वाली भारतीय कंपनियों
को समर्थन देने
के लिए रियायती
वित्त पोषण योजना
को मंजूरी दी।
यह योजना सरकार
के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम
से जुड़ी है।
भारत
ने एआईआईबी पर
हस्ताक्षर कियाः
29 जून
2015 को भारत ने अन्य
देशों के साथ आर्टिकल
ऑफ एग्रीमेंट ऑफ
द बैंक समझौते
पर हस्ताक्षर किया।
एआईआईबी बीजिंग
में स्थापित किए
जाने वाला बहुपक्षीय
बैंक होगा। यह
सतत आर्थिक विकास
तेज करेगा, धन सृजन
करेगा और अवसंरचना
तथा अन्य उत्पादक
क्षेत्रों में
निवेश करके एशिया
में अवसंरचना संपर्क
में सुधार करेगा।
आर्टिकल ऑफ एग्रीमेंट
की पुष्टि प्रक्रिया
चल रही है।
जी-20 शिखर
बैठक 2015-
तुर्की
के अन्तालिया में
15-16 नवंबर को जी-20 शिखर
बैठक 2015 हुई। प्रधानमंत्री
ने भारत का नेतृत्व
किया। यह शिखर
बैठक वित्त मंत्री
श्री अरुण जेटली,
शेरपा डॉं. पनगड़िया
और भारत सरकार
के प्रतिनिधियों
की अंतर-सरकारी
बैठकों की लंबी
प्रक्रिया समाप्त
होने के अवसर पर
हुई। जी-20 आर्थिक
तथा वित्तीय सहयोग
पर बल देता है।
अन्तालिया में
इस वर्ष की शिखर
बैठक में नेताओं
ने वैश्विक अर्थव्यवस्था
को मजबूत बनाने,
वैश्विक विकास
को और अधिक समावेशी
बनाने, अंतर्राष्ट्रीय
वित्तीय प्रणाली
के लचीलेपन को
बढाने, दीर्घ अवधि
विकास में वृद्धि
के लिए निवेश जुटाने,
बहुपक्षीय व्यापार
प्रणाली को मजबूत
बनाने और आर्थिक
सुधार तथा श्रम
बाजारों पर पहले
की प्रतिबद्धताओं
को लागू करने के
लिए संकल्प व्यक्त
किया।
स्वर्ण
योजनाएः
स्वर्ण
मौद्रिकरण योजना
इस योजना
की घोषणा 2015-16 के बजट
में की गई थी। इसका
उद्देश्य घरों
तथा ट्रस्टों के
पास अनुत्पादक
रूप में पड़े सोने
को एकत्रित करके
उत्पादक उपयोग
में लगाना है।
यह योजना 5 नवंबर
2015 को भारत के प्रधानमंत्री
द्वारा लॉंच की
गई। इस योजना के
अंतर्गत छोटे और
मझौले स्तर पर
काम करने वाले
स्वर्ण आभूषण निर्माताओं
को सोना उपलब्ध
करने से लाभ मिलेगा।
इससे सोना जमा
कराने वाले साधारण
लोगों को भी लाभ
होगा।
सार्वभौमिक
स्वर्ण बॉंड योजना
लोगों
को निवेश का नया
वित्तीय उपाय उपलब्ध
कराने और सोने
की मांग घटाने
के लिए 2015-16 के बजट
में इस योजना की
घोषणा की गई थी।
भारत के प्रधानमंत्री
ने 5 नवंबर 2015 को यह
योजना लॉंच की।
इस योजना से दीर्घ
अवधि में सोने
के आयात पर देश
की निर्भरता कम
होगी। 6 नवंबर 2015 से
30 नवंबर 2015 के बीच
250 करोड़ रुपए के
स्वर्ण बॉंड जारी
किए गए है।
भारतीय
स्वर्ण सिक्का
देश
के टकसाल में बनाए
गए राष्ट्रीय स्वर्ण
सिक्कों को बढ़ावा
देने के लिए 2015-16 के
बजट में इस योजना
की घोषणा की गई
थी। यह योजना सरकार
के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम
से जुड़ी है। 5 नवंबर
2015 को भारत के प्रधानमंत्री
ने इसे लॉंच किया।
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