- किसी देश में एक उचित जीवन स्तर जीने के लिए जरूरी न्यूनतम आय को वहां की गरीबी रेखा कहा जाता है। इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है।
=>संयुक्त राष्ट्र के अनुसार गरीबी:- विकल्पों और मौकों का अभाव ही गरीबी है। यह मानव आत्मसम्मान का उल्लंघन है। इसका मतलब समाज में प्रभावकारी रूप से भागीदारी करने वाली मूल क्षमता का अभाव होना है। इसका मतलब किसी के पास संसाधनों का इतना अभाव होना है कि वह परिवार को न तो भरपेट भोजन कराने में सक्षम है न ही उनके तन ढकने में। ...इसका मतलब असुरक्षा, लाचारी और बहिष्कार होता है। हिंसा के प्रति अतिसंवेदनशील होना, एकाकी जीवन जीने या नाजुक माहौल में जीने को अभिशप्त होना होता है।
=>विश्व बैंक के अनुसार गरीबी:- किसी को उसके कल्याण से महरूम रखना भी गरीबी का एक रूप है। इसमें कम आय और आत्मसम्मान से जीने के लिए मूलभूत चीजों एवं सेवाओं को ग्रहण करने की अक्षमता शामिल होती है। स्तरहीन शिक्षा और स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और साफ-सफाई की खराब उपलब्धता, अभिव्यक्ति का अभाव भी गरीबी से जुड़े होते हैं।
जो व्यक्ति अमेरिकी परिभाषा के अनुसार गरीब हैं, जरूरी नहीं कि वह अन्य देशों के गरीबी के पैमाने पर भी खरा उतरता हो। व्यावहारिक रूप से विकसित देशों की गरीबी रेखा विकासशील देशों की गरीबी रेखा से ऊंची है।
जो व्यक्ति अमेरिकी परिभाषा के अनुसार गरीब हैं, जरूरी नहीं कि वह अन्य देशों के गरीबी के पैमाने पर भी खरा उतरता हो। व्यावहारिक रूप से विकसित देशों की गरीबी रेखा विकासशील देशों की गरीबी रेखा से ऊंची है।
=>अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा:-
- प्रतिदिन एक डॉलर पर गुजर करने वाले लोग गरीब हैं। 2015 में विश्व बैंक ने इस रेखा को संशोधित कर 1.90 डॉलर तय किया। सामान्य रूप से गरीबी रेखा का निर्धारण करने में एक औसत व्यक्ति द्वारा सालाना उपभोग किए जाने वाले सभी जरूरी संसाधनों की लागत निकाली जाती है। मांग आधारित इस दृष्टिकोण के तहत एक दीर्घ जीवन जीने के लिए जरूरी न्यूनतम खर्च का आकलन किया जाता है।
- प्रतिदिन एक डॉलर पर गुजर करने वाले लोग गरीब हैं। 2015 में विश्व बैंक ने इस रेखा को संशोधित कर 1.90 डॉलर तय किया। सामान्य रूप से गरीबी रेखा का निर्धारण करने में एक औसत व्यक्ति द्वारा सालाना उपभोग किए जाने वाले सभी जरूरी संसाधनों की लागत निकाली जाती है। मांग आधारित इस दृष्टिकोण के तहत एक दीर्घ जीवन जीने के लिए जरूरी न्यूनतम खर्च का आकलन किया जाता है।
=>देशों में गरीबी मापने के तरीके:-
- यहां गरीबी रेखा के निर्धारण में तुलनात्मक गरीबी पैमाने का उपयोग किया जाता है। यह 'आर्थिक दूरी पर आधारित होता है। आर्थिक दूरी आय का एक निर्धारित स्तर है जिसे औसत घरेलू आय का पचास फीसद निर्धारित किया जाता है।
- यहां गरीबी रेखा के निर्धारण में तुलनात्मक गरीबी पैमाने का उपयोग किया जाता है। यह 'आर्थिक दूरी पर आधारित होता है। आर्थिक दूरी आय का एक निर्धारित स्तर है जिसे औसत घरेलू आय का पचास फीसद निर्धारित किया जाता है।
=>अमेरिका: गरीबी के मानदंडों का विकास पचास साल पहले किया गया। उस समय हर परिवार अपनी कुल आय का एक तिहाई खाद्य पदार्थों पर खर्च करते थे। लिहाजा खाद्य लागत में तीन के गुणनफल के आधार पर इसका निर्धारण किया गया। तब से लगातार मुद्रास्फीति के आधार पर सालाना वही आंकड़े अद्यतन किए जाते हैं।
=>विश्व बैंक: यह गरीबी को बुनियादी गरीबी के दृष्टिकोण से परिभाषित करता है। इसके अनुसार 1.25 डॉलर से कम पर रोजाना आजीविका चलाने वाले लोग घोर गरीबी की चपेट में हैं। दुनिया में इनकी संख्या 140 करोड़ है। वहीं दो डॉलर से कम पर आश्रित लोग मध्यम गरीबी के शिकार हैं।
=>निवारण के उपाय:-
-:->अल्पकालिक दृष्टिकोण से तात्कालिक राहत प्रदान करना महत्वपूर्ण है और गरीबों तक पहुंच के लिए इन कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए। आधार कार्ड के जरिये प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण और जन धन योजना के तहत नए बैंक अकाउंट खोलने से इनमें व्याप्त लीकेज को रोका जा सकता है। हालांकि आधार कार्ड के तहत विशिष्ट पहचान मिलती है और इससे छद्म और डुप्लीकेट कार्ड धारकों के लिए गुंजाइश नहीं होती लेकिन यह गरीब की पहचान नहीं करता। लेकिन अमीर व्यक्ति की पहचान की जा सकती है और उसको प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण से दूर किया जा सकता है। यह पाया गया कि 70 प्रतिशत लोग अभी भी नकद हस्तांतरण के योग्य हैं।
-:->अल्पकालिक दृष्टिकोण से तात्कालिक राहत प्रदान करना महत्वपूर्ण है और गरीबों तक पहुंच के लिए इन कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए। आधार कार्ड के जरिये प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण और जन धन योजना के तहत नए बैंक अकाउंट खोलने से इनमें व्याप्त लीकेज को रोका जा सकता है। हालांकि आधार कार्ड के तहत विशिष्ट पहचान मिलती है और इससे छद्म और डुप्लीकेट कार्ड धारकों के लिए गुंजाइश नहीं होती लेकिन यह गरीब की पहचान नहीं करता। लेकिन अमीर व्यक्ति की पहचान की जा सकती है और उसको प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण से दूर किया जा सकता है। यह पाया गया कि 70 प्रतिशत लोग अभी भी नकद हस्तांतरण के योग्य हैं।
- मौजूदा कार्यक्रमों में अक्षमता और लीकेज के चलते अभी जितना खर्च हो रहा है, वास्तव में उससे कम खर्च की ही दरकार होगी। प्रभावी नकद हस्तांतरण से हम गरीबी पर तत्काल प्रभाव डाल सकते हैं। हालांकि ये दीर्घकालिक समस्या का हल नहीं हैं।
- गरीब इसलिए गरीब है क्योंकि उसके पास जमीन, संपत्ति और कौशल का अभाव है। अकुशल श्रम शक्ति ही उसकी एकमात्र पूंजी है। अतिरिक्त संपत्ति या उनके इस संपत्ति की वैल्यू में इजाफा करके ही उन्हें गरीबी के दुष्चक्र से निकाला जा सकता है।
- भूमि सुधारों के मामले में राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है और ये ऐसी चीजें हैं जो तर्कसंगत समय में पूरी नहीं हो सकती। इसके साथ ही हमारे देश में भूमि की कमी है और ऐसे में सभी उपजाऊ भूमि का बराबर बंटवारा कर भी दिया जाए तो हर परिवार के हिस्से में जमीन का मामूली टुकड़ा आएगा, उससे वे गरीब भी बने रहेंगे।
- भूमि सुधारों के मामले में राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है और ये ऐसी चीजें हैं जो तर्कसंगत समय में पूरी नहीं हो सकती। इसके साथ ही हमारे देश में भूमि की कमी है और ऐसे में सभी उपजाऊ भूमि का बराबर बंटवारा कर भी दिया जाए तो हर परिवार के हिस्से में जमीन का मामूली टुकड़ा आएगा, उससे वे गरीब भी बने रहेंगे।
- अंत्योदय योजना के तहत गरीबों को दुधारू जानवर देने का प्रयास किया गया। वह भी बहुत कारगर नहीं रहा क्योंकि गरीबों को इन जानवरों के लिए चारे का इंतजाम करना और दूध बेचने के लिए बाजार की कमी एक समस्या रहा। इनके बिना इनसे लाभ पाना मुश्किल ही साबित हुआ।
- गरीबों की एकमात्र पूंजी श्रम की वैल्यू (कीमत) बढ़ाना भी विकल्प के रूप में पेश किया गया। इसका आशय श्रम के वेतन दरों में बढ़ोतरी से है। कानून बनाकर, श्रम को संगठित कर (यूनियन) या श्रम की मांग सृजित करने से किया जा सकता है। लेकिन न्यूनतम मजदूरी बढ़ाना कारगर नहीं होगा क्योंकि यह श्रम की मांग को रोकेगा। उच्च वेतन दरों से यूनियन अपने सदस्यों को लाभान्वित करेंगी और रोजगार की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का दबाव डालेंगी। लेकिन इसके साथ ही साथ रोजगार के नए अवसरों पर इसका बुरा असर पड़ेगा और पूंजी सघन विकास प्रोत्साहित होगा। यदि हम तेजी से गरीबी को घटाना चाहते हैं तो हमको श्रम सघन औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करना होगा जोकि श्रम की मांग को सृजित करेगा।
- लोगों के कौशल और ज्ञान को बढ़ाने पर जोर देने के साथ-साथ रोजगार सृजन के लिए श्रम सघन विकास पर जोर देना चाहिए। इसलिए श्रम कानूनों में सुधार के साथ-साथ इंस्पेक्टर राज पर अंकुश जरूरी है।
- गुणात्मक श्रम के लिए अच्छी सेहत और पोषण स्तर आवश्यक है। पीडीएस और आइएसडीएस कार्यक्रमों के बावजूद कुपोषित बच्चों की बड़ी संख्या है जोकि बाद में कमजोर वयस्कों में तब्दील होंगे।
- स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई के बिना केवल पोषक तत्वों को प्रदान करने से ही पोषण स्तर के मामले में स्थिति सुधरने वाली नहीं है। बिना अच्छी सेहत के कामगार गरीबी के स्तर से उठने के लिहाज से पर्याप्त रूप से नहीं कमा सकता।
- ऐसे में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में कौशल विकास और श्रम सघन विकास के साथ-साथ स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई के प्रावधानों को अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
- स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई के बिना केवल पोषक तत्वों को प्रदान करने से ही पोषण स्तर के मामले में स्थिति सुधरने वाली नहीं है। बिना अच्छी सेहत के कामगार गरीबी के स्तर से उठने के लिहाज से पर्याप्त रूप से नहीं कमा सकता।
- ऐसे में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में कौशल विकास और श्रम सघन विकास के साथ-साथ स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई के प्रावधानों को अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
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