- जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री के एक शोध के अनुसार - वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या में वैश्विक स्तर पर एक-तिहाई लोगों की मौत घरेलू ऊर्जा ( ईंधन ) से होने वाले प्रदूषण के कारण होती है, वहीं एशियाई देशों में घरेलू ऊर्जा से प्रदूषण ही मौत की सबसे बड़ी वजह बन गई हैI
- जाहिर है कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण से मौत का खतरा अपेक्षाकृत अधिक है, क्योंकि विकासशील देशों में जनसंख्या का दबाव ज्यादा है और हवा की गुणवत्ता बेहद खराब पाई गई है।
- जाहिर है कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण से मौत का खतरा अपेक्षाकृत अधिक है, क्योंकि विकासशील देशों में जनसंख्या का दबाव ज्यादा है और हवा की गुणवत्ता बेहद खराब पाई गई है।
- एशियाई देशों में जहां घरेलू ईंधन की वजह से हवा में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है जिसकी वजह से सांस संबंधित बीमारियां जैसे टीबी, अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर भी बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका, यूरोप और यूरेशिया में कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले यंत्रों तथा सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की वजह से हवा जहरीली होकर बीमारियों का सबब बन रही है।
- 'नेचर' जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण को रोकने हेतु यदि अविलंब और कारगर उपाय नहीं किए गए तो वर्ष 2050 तक हर बरस तकरीबन 66 लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में प्रदूषित हवा की वजह से हर बरस तकरीबन 33 लाख लोग मर जाते हैं।
=>भारत की स्थिति :-
जो स्थिति वैश्विक स्तर पर विकसित और विकासशील देशों की है, वही स्थिति हमारे यहां शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की है, जिस तरह विकसित देशों में वाहनों और यंत्रों के कारण वायु प्रदूषण की स्थितियां बेकाबू होती जा रही हैं, ठीक वैसे ही भारतीय शहरों की हवा भी वाहनों से जहरीली होती जा रही है। इसी तरह जैसे एशियाई देशों में ईंधन का धुआं, प्रदूषण का मुख्य कारण है, ठीक वैसे ही भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन का धुआं, हवा को जहरीली बना रहा है।
जो स्थिति वैश्विक स्तर पर विकसित और विकासशील देशों की है, वही स्थिति हमारे यहां शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की है, जिस तरह विकसित देशों में वाहनों और यंत्रों के कारण वायु प्रदूषण की स्थितियां बेकाबू होती जा रही हैं, ठीक वैसे ही भारतीय शहरों की हवा भी वाहनों से जहरीली होती जा रही है। इसी तरह जैसे एशियाई देशों में ईंधन का धुआं, प्रदूषण का मुख्य कारण है, ठीक वैसे ही भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन का धुआं, हवा को जहरीली बना रहा है।
- एक अध्ययन के अनुसार, भारत के शहरों में, दिल्ली और कोलकाता, वायु प्रदूषण की दृष्टि से खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं, वर्ष 2050 तक इसके दुष्प्रभाव से मरने वालों की सबसे बड़ी संख्या दिल्ली और कोलकाता के लोगों की ही होगी। अन्यथा नहीं है कि फिलहाल भारत में प्रतिवर्ष लगभग 6.50 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरते हैं, अतः आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा नुकसान भारत का ही होने वाला है
- विश्व स्वास्थ्य संगठन, पिछले कुछ समय से भारत में वायु प्रदूषण को लेकर चिंता व्यक्त करता आ रहा है। उसका मानना है कि वायु प्रदूषण के कारण वक्त से पहले 88 फीसदी मौतें उन देशों में होती हैं जिनकी आय का स्तर निम्न अथवा मध्य स्तर का है। उसने भारत और चीन को सर्वाधिक वायु प्रदूषित देशों के बतौर रेखांकित किया है, साथ ही भारत और चीन को वायु प्रदूषण की वजह से हुई मौतों और बीमारियों के कारण प्रतिवर्ष लगभग 2,000 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
- स्पष्ट है की वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव में निहित सामाजिक और आर्थिक हानि भारत के लिए इसे अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है.
=>चुनौतियाँ :-
1. वायु प्रदूषण को मापना
2. वायु-गुणवत्ता की निगरानी,
3. प्रदूषण के कारणों की जानकारी का सीमित होना
4. वायु प्रदूषण से उत्पन्न दुष्प्रभाव ( विशेषतः स्वास्थ्य संबंधी ) का कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध न होना
1. वायु प्रदूषण को मापना
2. वायु-गुणवत्ता की निगरानी,
3. प्रदूषण के कारणों की जानकारी का सीमित होना
4. वायु प्रदूषण से उत्पन्न दुष्प्रभाव ( विशेषतः स्वास्थ्य संबंधी ) का कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध न होना
- भारत की जिम्मेदारी बड़ी और ज़्यादा गंभीर हो जाती है, क्योंकि हमें विकसित और विकासशील दोनों ही प्रकार के देशों में किए जा रहे उपायों को अपनाना पड़ेगा।
- एक ओर हमें गांवों की हवा को शुद्ध रखने के लिए ईंधन के बतौर लकड़ी, कोयले का कम से कम इस्तेमाल करना होगा तो दूसरी तरफ भारतीय सड़कों पर बेतहाशा दौड़ते वाहनों को सीमित व नियंत्रित करना होगाI
- वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जहाँ भी और जैसे भी समाधानों पर काम हो रहा है, हमें उन पर गंभीरता से ध्यान देते हुए उन्हें अपनाने की जरूरत को बेहतर समझना होगा तभी हम इस मूल्यवान मनुष्य जीवन को बचा पाने में सफल हो सकेंगे।
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