- विकट हो रहे किसानी संकट से बाहर निकलने में अनेक गांवों में आग्रेनिक खेती से मदद मिली है.
- खर्च कम करने में, मिट्टी का प्राकृतिक उपजाऊपन सुधारने के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता के उत्पादन में यह बहुत उपयोगी है.
- खर्च कम करने में, मिट्टी का प्राकृतिक उपजाऊपन सुधारने के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता के उत्पादन में यह बहुत उपयोगी है.
- हाल ही में भारत सरकार ने उत्तर-पूर्व क्षेत्र को आग्रेनिक खेती का एक मुख्य केंद्र बनाने की योजना सामने रखी है. इससे पहले सिक्किम में तो पूरी तरह आग्रेनिक खेती अपनाने का महवपूर्ण निर्णय लिया गया.
- कुछ स्थानों पर आग्रेनिक खेती के प्रसार को अब आदर्श ग्राम योजना से भी जोड़ा जा रहा है. इसके अतिरिक्त देश के अनेक क्षेत्रों में आग्रेनिक खेती के सफल प्रयोगों के परिणाम सामने आ रहे हैं.
- कुछ स्थानों पर आग्रेनिक खेती के प्रसार को अब आदर्श ग्राम योजना से भी जोड़ा जा रहा है. इसके अतिरिक्त देश के अनेक क्षेत्रों में आग्रेनिक खेती के सफल प्रयोगों के परिणाम सामने आ रहे हैं.
- आग्रेनिक खेती के महत्व को नए सिरे से पहचानने का एक बड़ा कारण यह है कि पांच दशकों तक रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं पर तेजी से बढ़ती निर्भरता के दुष्परिणाम अब बहुत स्पष्ट हो चुके हैं. यही वजह है कि बहुत से किसानों को जब अनुकूल अवसर मिलते हैं तो वे कई स्तरों पर आग्रेनिक खेती को आजमाना चाहते हैं.
- इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध आंकड़े अब यह स्पष्ट बता रहे हैं कि लगभग 50 वर्ष पहले कैमिकल फर्टिलाइजर व पैस्टीसाइड के तेजी से बढ़ते उपयोग पर आधारित जिस कृषि नीति का बहुप्रचार किया गया था, उससे वास्तव में उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई.
- रासायनिक खाद व कीटनाशक के अधिक उपयोग से भूमि के प्राकृतिक उपजाऊपन में कई तरह से गिरावट आती है. आसपास के पर्यावरण पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है जो आगे चलकर उत्पादकता में और गिरावट का कारण बनता है.
- भूजल पर भी उसका बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है. कई मित्र कीटों व पक्षियों, विशेषकर मधुमक्खियों व तितलियों पर जहरीले कीटनाशकों का बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है. इसका पौधे व फसल पर भी प्रतिकूल असर होता है.
- भूजल पर भी उसका बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है. कई मित्र कीटों व पक्षियों, विशेषकर मधुमक्खियों व तितलियों पर जहरीले कीटनाशकों का बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है. इसका पौधे व फसल पर भी प्रतिकूल असर होता है.
- हरित क्रांति के दौर में ऐसे बीज तेजी से फैलाए गए जिनके पौधों में अधिक रासायनिक खाद सहन करने की क्षमता हो. यदि केवल दो मुख्य खाद्य फसलों गेहूं व धान को देखें तो मात्र इन दो फसलों में नई हरित क्रांति की किस्मों को मात्र 14 वर्षो में 330 लाख हेक्टेयर में फैला दिया गया. इतनी तेजी से किसी नई तकनीक के फैलने का यह इतिहास में विशिष्ट उदाहरण है. इन नए बीजों से जो तकनीकें जुड़ी थीं, वे इससे पूर्व के बीजों से बहुत अलग थीं.
- जहां पहले बहुत विविधता वाले बीज किसानों के पास थे, वहीं नए बीजों का जेनेटिक आधार बहुत सीमित था और इस कारण इनमें कीड़ों व बीमारियों के प्रकोप अधिक तेजी से फैलने की पूरी संभावना थी.
- जहां पहले बहुत विविधता वाले बीज किसानों के पास थे, वहीं नए बीजों का जेनेटिक आधार बहुत सीमित था और इस कारण इनमें कीड़ों व बीमारियों के प्रकोप अधिक तेजी से फैलने की पूरी संभावना थी.
- इस कड़वी सचाई को चावल के संदर्भ में भारत के शीर्ष के कृषि वैज्ञानिकों ने हरित क्रांति के आरंभिक दौर में स्वीकार कर लिया था. ऐसे अनेक वैज्ञानिकों की एक टास्क फोर्स ने स्वीकार किया था कि चावल की नई किस्मों का जेनेटिक आधार बहुत कम है व इनमें अनेक हानिकारक कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप बहुत बढ़ा है.
- एक बड़े क्षेत्र में बहुमूल्य जैव-विविधता वाले परंपरागत बीज पूरी तरह लुप्त हो गए. इन परंपरागत बीजों से जुड़ा हुआ ज्ञान बुजुर्ग शताब्दियों से नई पीढ़ी को देते आए थे, वह ज्ञान भी तेजी से लुप्त होने लगा. कई शताब्दियों से व कुछ क्षेत्रों में तो हजारों वर्षो से जो परंपरागत ज्ञान व बीज एकत्र हुए थे वे महज 50 वर्षो में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे.
- यदि आग्रेनिक खेती को आगे बढ़ाना है तो उसे लुप्त हुए इस समृद्ध परंपरागत ज्ञान व बीजों से बहुत कुछ सीखना पड़ेगा. 50 वर्ष पहले हमारी अधिकांश खेती आग्रेनिक खेती ही थी. अत: आग्रेनिक खेती का कहीं बेहतर ज्ञान उस समय उपलब्ध था.
- आग्रेनिक खेती के लिए बहुत विविधता भरे व स्थानीय जलवायु के अनुकूल बीज उस समय उपलब्ध थे. इनमें से कई बीज अभी जीन-बैंकों में तो उपलब्ध हैं, पर किसानों के खेतों में उपलब्ध नहीं हैं. इन बीजों के संरक्षण के किसान-आधारित प्रयास तेज होने चाहिए व व्यापक स्तर पर होने चाहिए.
- आग्रेनिक खेती के लिए बहुत विविधता भरे व स्थानीय जलवायु के अनुकूल बीज उस समय उपलब्ध थे. इनमें से कई बीज अभी जीन-बैंकों में तो उपलब्ध हैं, पर किसानों के खेतों में उपलब्ध नहीं हैं. इन बीजों के संरक्षण के किसान-आधारित प्रयास तेज होने चाहिए व व्यापक स्तर पर होने चाहिए.
- आग्रेनिक खेती को आगे बढ़ाने के लिए परंपरागत ज्ञान व आधुनिक विज्ञान, दोनों की जरूरत है. आधुनिक विज्ञान को किसानों की जरूरतों को ध्यान से समझना होगा.
- भारत के अधिकांश किसान छोटे किसान हैं. उनका खर्च कम रखना व उन्हें कर्ज से बचाना जरूरी है. अत: ऐसी तकनीक आधारित आग्रेनिक खेती बढ़ानी चाहिए जो गांव में उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग कर उनकी आत्मनिर्भरता को मजबूत करे.
- भारत के अधिकांश किसान छोटे किसान हैं. उनका खर्च कम रखना व उन्हें कर्ज से बचाना जरूरी है. अत: ऐसी तकनीक आधारित आग्रेनिक खेती बढ़ानी चाहिए जो गांव में उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग कर उनकी आत्मनिर्भरता को मजबूत करे.
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