प्रश्न:- एनजीटी क्या है। यह संस्था कौन-सा कानून लागू करती है, ? इसका ढांचा क्या है। कोर्ट और ट्रिब्यूनल में क्या अंतर है?
- ट्रिब्यूनल यानी एक विशेष कोर्ट। इसे न्यायाधिकरण ही कहते हैं। वह क्षेत्र विशेष संबंधी मामलों को ही लेता है। जैसे एनजीटी में पर्यावरण, रक्षा, वनों के संरक्षण, इससे जुड़ी क्षतिपूर्ति या लोगों को हुए नुकसान आदि के बारे में ही निर्णय लिए जाते हैं। दूसरी ओर अगर कोर्ट को देखें तो इसमें अनेक मामले आते हैं, जो विविध विषय पर आधारित होते हैं।
=>नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल:-
- 18 अक्टूबर 2010 को एक अधिनियम के द्वारा पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों को लागू करने एवं व्यक्तियों और संपत्तियों के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने के लिए यह ट्रिब्यूनल बनाया गया।
- 18 अक्टूबर 2010 को एक अधिनियम के द्वारा पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों को लागू करने एवं व्यक्तियों और संपत्तियों के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने के लिए यह ट्रिब्यूनल बनाया गया।
=>उद्देश्य :-
- इसमें पर्यावरण संरक्षण, वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटारे भी किए जाते हैं। यह ट्रिब्यूनल सिविल प्रोसीजर कोड 1908 के अंतर्गत तय प्रक्रिया द्वारा बाधित नहीं है, बल्कि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।
- आदेश और निर्णय देते समय एनजीटी टिकाऊ विकास की ओर ध्यान देता है तथा पर्यावरण से जुड़ी सावधानियां बरतने की कोशिश करता है।
- इसमें पर्यावरण संरक्षण, वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटारे भी किए जाते हैं। यह ट्रिब्यूनल सिविल प्रोसीजर कोड 1908 के अंतर्गत तय प्रक्रिया द्वारा बाधित नहीं है, बल्कि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।
- आदेश और निर्णय देते समय एनजीटी टिकाऊ विकास की ओर ध्यान देता है तथा पर्यावरण से जुड़ी सावधानियां बरतने की कोशिश करता है।
- यह संस्था मानती है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले इसकी भरपाई भी करें। कानून की सही जानकारी हो तो एनजीटी में कोई भी अपना मुकदमा स्वयं लड़ सकता है।
=>मुख्यालय :-
- इसका मुख्य केंद्र, दिल्ली में है। इसकी चार क्षेत्रीय शाखाएं पुणे, भोपाल, चेन्नई और कोलकाता में स्थापित की गई हैं।
- इसके अलावा जरूरत के हिसाब से इसकी अन्य शाखाएं बनाई जा सकती हैं।
- इसका मुख्य केंद्र, दिल्ली में है। इसकी चार क्षेत्रीय शाखाएं पुणे, भोपाल, चेन्नई और कोलकाता में स्थापित की गई हैं।
- इसके अलावा जरूरत के हिसाब से इसकी अन्य शाखाएं बनाई जा सकती हैं।
=>"NGTकी संरचना:-
- एनजीटी के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं।
- उनके साथ न्यायिक सदस्य के रूप में हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं।
--> एनजीटी में सिर्फ इन कानून से जुड़ी बातों को चुनौती दी जा सकती है-
1. जल (रोक और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1974)
2. वन संरक्षण कानून 1980
3. जल (रोक और प्रदूषण नियंत्रण) उपकर कानून, 1977
4. वायु (रोक और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम 1981
5. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
6. पब्लिक लायबिलिटी इंश्योरेंस कानून 1991
7. जैव विविधता कानून 2002
- एनजीटी के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं।
- उनके साथ न्यायिक सदस्य के रूप में हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं।
--> एनजीटी में सिर्फ इन कानून से जुड़ी बातों को चुनौती दी जा सकती है-
1. जल (रोक और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1974)
2. वन संरक्षण कानून 1980
3. जल (रोक और प्रदूषण नियंत्रण) उपकर कानून, 1977
4. वायु (रोक और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम 1981
5. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
6. पब्लिक लायबिलिटी इंश्योरेंस कानून 1991
7. जैव विविधता कानून 2002
हालांकि वन्य जीव संरक्षण कानून 1972, भारतीय वन कानून 1927 और राज्य द्वारा जंगल और पेड़ की रक्षा के कानून एनजीटी के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं। हां, उच्चतम न्यायालय में या उच्च न्यायालय में जनहित याचिका या सिविल सूट लाए जा सकते हैं।
- एनजीटी में आवेदन डालने का तरीका बहुत ही सरल है। क्षतिपूर्ति के मामलों में दावे की रकम की एक फीसदी राशि अदालत में जमा करनी होती है। पर जिन मामलों में क्षतिपूर्ति की बात नहीं होती है, उसमें मात्र एक हजार रु. की फीस ली जाती है।
- एनजीटी में आवेदन डालने का तरीका बहुत ही सरल है। क्षतिपूर्ति के मामलों में दावे की रकम की एक फीसदी राशि अदालत में जमा करनी होती है। पर जिन मामलों में क्षतिपूर्ति की बात नहीं होती है, उसमें मात्र एक हजार रु. की फीस ली जाती है।
=>सजा:-
यदि इसके आदेश को नहीं माना जाए तो तीन साल की कैद या दस करोड़ रु. का दंड या ये दोनों हो सकते हैं। इससे ट्रिब्यूनल के बनने के बाद इसके अधिकार क्षेत्र के मामले दूसरी सिविल अदालतों में नहीं ले जा सकते।
यदि इसके आदेश को नहीं माना जाए तो तीन साल की कैद या दस करोड़ रु. का दंड या ये दोनों हो सकते हैं। इससे ट्रिब्यूनल के बनने के बाद इसके अधिकार क्षेत्र के मामले दूसरी सिविल अदालतों में नहीं ले जा सकते।
- भारत के संविधान में 1976 में संशोधनों के द्वारा दो महत्वपूर्ण अनुच्छेद 48 (ए) तथा 51 (ए) जोड़े गए। इससे पहले संविधान में पर्यावरण के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था।
- 48 (ए) राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार सुनिश्चित करें तथा देश के वनों और वनजीवों की रक्षा करें।
- 51 (ए) बताता है कि नागरिकों का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण की रक्षा करें, इसका संवर्द्धन करें तथा सभी जीवधारियों के प्रति दया का भाव रखें।
- 48 (ए) राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार सुनिश्चित करें तथा देश के वनों और वनजीवों की रक्षा करें।
- 51 (ए) बताता है कि नागरिकों का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण की रक्षा करें, इसका संवर्द्धन करें तथा सभी जीवधारियों के प्रति दया का भाव रखें।
- 1972 के बाद भारत सरकार इस बारे में सजग हुई। वन्य जीव संरक्षण कानून 1972, जल प्रदूषण नियंत्रण व रोकथान कानून 1974 आदि आए। फिर 1986 में पर्यावरण संरक्षण आया, जिसमें पिछले कानून की खामियां दूर की गईं।
- 1997 में नेशनल एनवायरमेंट अपीलेट अथॉरिटी कानून 1997 तथा बायोलॉजिकल डायवरसिटी जैव विविधता कानून 2002 आया।
- यहां यह बताना भी अति आवश्यक है कि जनहित याचिका की मदद से पर्यावरण को बचाने के अनेक प्रयास पिछले तीन दशकों में किए गए। हमारे देश की न्यायपालिका मानती है कि न्याय तक सबकी पहुंच हो चाहे कोई व्यक्ति गरीब, अनपढ़ या अनजान हो।
- एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (एफआईआर 2001 एससी 1948) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि वाहनों के कारण दिल्ली में अत्यधिक वायु प्रदूषण होता है, जिससे मनुष्य के जीवन के अधिकार का हनन होता है। इसलिए निर्देश दिए गए कि दिल्ली में सार्वजनिक वाहनों को सीएनजी से चलाए।
- चर्च ऑफ गॉड इन इंडिया बनाम केके आर मजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर एसो. (एफआईआर 2000 एससी 2773) याचिका में ध्वनि प्रदूषण पर न्यायालय ने सख्ती दिखाई और कहा कि ध्वनि प्रदूषण के कारण अनुच्छेद 21 में दिए अधिकार का उल्लंघन होता है।
- अब जनहित याचिका के साथ एनजीटी में जाने का भी विकल्प है। एनजीटी ने असरकारक फैसले लिए हैं, जैसे मेघालय में कोयला खनन पर रोक (अगस्त 2014), जो प्रदूषण का जिम्मेदार हो वो इसकी क्षतिपूर्ति करे।
- रेलवे स्टेशन पर साफ-सफाई, रेलवे ट्रेक के किनारे बाड़ लगाना, केरल में बालू खनन पर रोक आदि ऐतिहासिक फैसले लिए। प्लास्टिक के प्रयोग पर प्रतिबंध भी महत्वपूर्ण फैसला है।
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